केसरिया

वो था लाल और मैं पीला,उससे मिल हुआ केसरिया
उस रंग में हर्षित थे दोनों,के दोनों भी थे केसरिया
यू तो रंग में क्या रखा है , हर रंग का एक अपना रंग है
जीवन में तो प्यारा सब से, बस मेरा और उसका संग है
हैरान था मै जब ये जाना,
के उसने बदला रंग अपना

ये ना कोई लाल था ना पीला ना केसरिया,
रंग अलग था रूप अलग था,थी अलग वो नगरिया
फिर सोचा के क्यों ना बदलु, मै भी रंग नया यह अपना
ऐसा करने से शायद मै, पाऊं सुनहरा रंग पुराना
देखा झांक के अपने भीतर, तो मैने ये क्या पाया?
बाहर–भीतर केसरिया पुरा, मै पीला ना हो पाया
– सचिन

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