गहराईयाँ

मैंने काफी कोशिश की…. लेकिन…. तैरना कभी सीख नही पाया। मुझे लगाव है डूबने से। ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा कहता है कि हाथ पैर मारो,तैरने के लिए… खुद को बचाने के लिए। लेकिन डूबकर खुदसे ही मिल जाता हु मैं अक़्सर। मुझे इश्क़ हो गया है डूबने से । ये इश्क़ मुझे ले चलता है गहराईयों की ओर ।यू तो बताया जाता है कि गहराईयां अंधेरों से भरी होती है । पर वहाँ मुझे कुछ तिलस्मी चीजें दिखाई पड़ती है , जो उन गहराईयों में उजालें भर देती है। और ये उजालें एहसास कराते है के गहराईयां और भी है….…शायद कभी न ख़त्म होनेवाली । कई बार गहराईयां दिख तो जाती है पर……..हर बार मैं वहाँ पहुँच नही पाता। लेकिन गज़ब की बात ये है के न पहुंचने पर अब मुझे मायूसी नही होती । क्योंकि ‘मजा कहीं पहुँचनेका नही सफ़र का होता है’ ये सुना या पढ़ा है मैंने पहले भी लेकिन अब तजुर्बा हो रहा है। ये सफ़र मेरी ज़िंदगी को और हसीन बना देता है। इसलिए मुझे इश्क़ है डूबने से।
और जब भी इन गहराईयोंसे निकल कर …बाहर खुली हवाओं में आना होता है , दम घुटने लगता है मेरा।मेरी आँखें सह नही पाती बाहर के उजालें।और फिर डर लगा रहता है के ज़िन्दगी कही छूट ना जाये उन्ही गहराईयों में।
बस यही सोचकर मैं फिरसे गोता लगा देता हूं।