Coffee ☕

नई सुबह है,नया दिन है ………पर कॉफी लगती है वही पुरानी सी।
जब भी मै सिर्फ अपने साथ होता हु और देखता हु इसकी तरफ तो लगता है के ये भी मेरी उम्र की है। जैसे हम साथ ही बड़े हुए हो।
किसी अच्छे दोस्त की तरह ये मेरे हर वक़्त में साथ रही है। न कोई सलाह, न कोई मशवरा देती है पर साथ होती है।
किताबें, गाने, फिल्में, मेरा साज़, मेरा बिस्तर और वो तकिया,मेरा आईना और उसे लगकर वो पौधें रखा हुआ दरीचा, मेरे बगीचे में लगा हुआ झूला, गाड़ी में एक लंबी ड्राइव….और न जाने किस किससे वास्ता है इसका।
अपने ख़ास दोस्तों के साथ वो खास कॉफी वाली गपशप । कितने नये रिश्तें बने है इसकी वजह से और कुछ पुराने थे जो फिरसे नये हुए इसकी बदौलत।
जिंदगी की कड़वाहट का लुत्फ़ उठाने का हुनर इसीसे सिखा है मैने।
पर फिर भी ये जताती नहीं कि ये सब से खास है। बस चुप सी रहती है … मानो ये मुझे जानती है,समझती है..मुझसे भी कई ज्यादा।
ग़ौर से सोचता हु तो सिर्फ हम–उम्र ही नहीं … मेरी हमराज़ भी लगती है ये कॉफी।
– सचिन

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *